Shri Shri 1008 Shri Bhuvanishwar Muniji Falahari Maharaj Ji

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भगवान शिव को सावन क्यों प्रिय है? जानें इस रहस्यमयी मास का गहरा आध्यात्मिक अर्थ

परम पूज्य श्री श्री 1008 मुनिजी फलाहारी महाराज जी !

आप सभी को मेरा प्रणाम! सावन का महीना हर शिव भक्त के मन में एक विशेष उल्लास और श्रद्धा जगाता है। हम अक्सर यह प्रश्न सुनते हैं कि “आखिर भगवान शिव को सावन इतना प्रिय क्यों है?” यह केवल एक धार्मिक मान्यता नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक, पौराणिक और प्राकृतिक रहस्य छिपे हुए हैं। आइए, मेरे साथ इन रहस्यों को उजागर करते हैं और समझते हैं कि क्यों यह महीना महादेव को इतना अधिक प्रिय है।


1. विषपान की दिव्य कथा : शिव का कल्याणकारी स्वरूप

सावन के महीने को भगवान शिव का प्रिय होने का सबसे प्रमुख कारण है समुद्र मंथन की कथा। यह एक ऐसी घटना है जिसने सृष्टि के कल्याण के लिए शिव के सर्वोच्च त्याग को दर्शाया।

पुराणों के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर अमरत्व की प्राप्ति के लिए क्षीरसागर का मंथन किया। इस मंथन से चौदह रत्न निकले, जिनमें अमृत भी शामिल था। लेकिन अमृत से पहले, मंथन से हलाहल नामक एक भयानक विष निकला। यह विष इतना तीव्र और विनाशकारी था कि उसकी अग्नि से तीनों लोक जलने लगे। सभी जीव-जंतु, देवता और असुर इस विष की भीषणता से त्राहि-त्राहि करने लगे। जब कोई उपाय नहीं सूझा, तो समस्त सृष्टि ने भगवान शिव की शरण ली।

शिव, जो ‘महादेव’ कहलाते हैं क्योंकि वे देवों के भी देव हैं, उन्होंने बिना किसी संकोच के इस विष को स्वयं पीने का निर्णय लिया। उन्होंने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। माता पार्वती ने अपने योगबल से इस विष को उनके कंठ से नीचे उतरने नहीं दिया, जिससे विष उनके शरीर में नहीं फैला और सृष्टि बच गई।

मुनिजी बताते हैं कि यह घटना सावन मास में हुई थी। विष के प्रभाव को कम करने और शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए, सभी देवी-देवताओं ने उन पर पवित्र नदियों का जल अर्पित किया। यही कारण है कि इस महीने में शिव पर जल चढ़ाने का विशेष महत्व है। यह घटना शिव के परम कल्याणकारी, त्यागी और महायोगी स्वरूप को दर्शाती है। सावन मास हमें शिव के इसी भाव को स्मरण कराता है – दूसरों के कल्याण के लिए स्वयं कष्ट सहने का भाव। जब हम सावन में शिव पर जल चढ़ाते हैं, तो हम न केवल उनकी पूजा करते हैं, बल्कि उनके इस महाबलिदान को याद करते हुए स्वयं में भी त्याग और परोपकार की भावना जागृत करते हैं। यह महीने भर का अभिषेक शिव के प्रति हमारे आभार और समर्पण का प्रतीक है।


2. प्रकृति का नवजीवन और शिव का नैसर्गिक अभिषेक

सावन का महीना भारत में वर्षा ऋतु का चरम होता है। भीषण गर्मी के बाद जब धरती पर मेघ बरसते हैं, तो पूरी प्रकृति में एक अद्भुत कायाकल्प होता है। सूखी धरती हरी-भरी हो उठती है, पेड़-पौधे नए पत्तों और फूलों से सज जाते हैं, और वातावरण में एक विशेष शीतलता और ताजगी घुल जाती है।

मुनिजी कहते हैं कि यह प्रकृति का शिव पर किया गया नैसर्गिक अभिषेक है। जैसे हम भक्त शिव को जल अर्पित करते हैं, वैसे ही प्रकृति स्वयं वर्षा की बूंदों से शिव के लिंग पर अनवरत अभिषेक करती रहती है। हरियाली और जीवन का यह संचार शिव के ‘महाकाल’ और ‘जीवनदाता’ स्वरूप को दर्शाता है। शिव, जो विनाशक भी हैं, वे ही जीवन के स्रोत भी हैं। वर्षा जीवन का प्रतीक है, और सावन में यह जीवन शिव के आशीर्वाद से फलता-फूलता है।

यह प्राकृतिक संबंध हमें सिखाता है कि शिव केवल मंदिरों में ही नहीं, बल्कि प्रकृति के हर कण में विद्यमान हैं। जब हम सावन में हरी-भरी प्रकृति को देखते हैं, तो हमें शिव की विराटता और उनके सृजनात्मक पहलू का अनुभव होता है। इस दौरान वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा और प्राण शक्ति बढ़ जाती है, जो आध्यात्मिक साधना के लिए अत्यंत अनुकूल होती है।


3. माँ पार्वती की तपस्या और शिव-पार्वती का मिलन

सावन का महीना प्रेम, तपस्या और दांपत्य सुख का भी प्रतीक है, और यह भी भगवान शिव को इस मास के प्रिय होने का एक महत्वपूर्ण कारण है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने जब दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया, तो उन्होंने भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या का संकल्प लिया।

माता पार्वती ने अपनी तपस्या सावन मास में ही आरंभ की थी। उन्होंने वर्षों तक निराहार रहकर, केवल पत्तों पर जीवन बिताया, जिससे उनका नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ा। उनकी इस अदम्य तपस्या, निष्ठा और सच्चे प्रेम से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। मान्यता है कि शिव और पार्वती का विवाह भी इसी मास में हुआ था या शिव ने पार्वती की तपस्या स्वीकार इसी मास में की थी।

मुनिजी समझाते हैं कि शिव और पार्वती का यह मिलन केवल दो आत्माओं का नहीं, बल्कि शक्ति (पार्वती) और चेतना (शिव) के संतुलन का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम और दृढ़ संकल्प हो, तो कुछ भी असंभव नहीं। सावन में सोमवार का व्रत विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं, और अविवाहित कन्याएँ अच्छे वर की कामना करती हैं, यह सब शिव-पार्वती के इसी पवित्र मिलन की प्रेरणा से होता है। यह महीना हमें त्याग, धैर्य, प्रेम और दांपत्य जीवन के आदर्शों को सिखाता है।


4. रुद्राभिषेक और कांवड़ यात्रा : भक्ति का चरम और शिव कृपा की वर्षा

सावन मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व होता है। ‘रुद्र’ शिव का एक उग्र रूप है, और ‘अभिषेक’ का अर्थ है स्नान कराना। इस महीने में भगवान शिव का जल, दूध, दही, घी, शहद, गन्ने का रस और अन्य पवित्र द्रव्यों से अभिषेक करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। यह मान्यता है कि सावन में रुद्राभिषेक करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इसके साथ ही, कांवड़ यात्रा भी सावन का एक अभिन्न अंग है। लाखों भक्त पवित्र नदियों से जल भरकर, कठिन पैदल यात्रा करके, अपने कंधे पर कांवड़ लिए शिव मंदिरों तक पहुंचते हैं और उस जल से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। यह यात्रा भक्तों की अटूट श्रद्धा, शारीरिक तपस्या और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है।

मुनिजी बताते हैं कि ये दोनों प्रथाएँ – रुद्राभिषेक और कांवड़ यात्रा – शिव को सावन प्रिय होने के कारणों को और पुष्ट करती हैं। ये भक्तों की गहन भक्ति को दर्शाती हैं, और भगवान शिव अपने भक्तों की निस्वार्थ भक्ति से सर्वाधिक प्रसन्न होते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान भक्त ‘बम बम भोले’ के जयकारे लगाते हुए चलते हैं, जिससे पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है। यह सामूहिक भक्ति और ऊर्जा शिव को प्रिय है क्योंकि यह प्रेम, एकता और अटूट विश्वास का प्रतीक है।


5. आध्यात्मिक ऊर्जा और साधना के लिए अनुकूल वातावरण

सावन का महीना आध्यात्मिक साधना और ध्यान के लिए भी अत्यंत अनुकूल माना जाता है। इस दौरान वातावरण में एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। बारिश की बूंदें, हरी-भरी प्रकृति और शांत वातावरण मन को एकाग्र करने में सहायक होता है।

मुनिजी अक्सर अपने शिष्यों को सावन में अधिक से अधिक समय ध्यान, मंत्र जाप और शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र जैसे शिव स्तोत्रों के पाठ में बिताने की सलाह देते हैं। उनका मानना है कि इस समय में की गई साधना का फल कई गुना अधिक मिलता है। शिव स्वयं योग और ध्यान के आदिगुरु हैं। सावन का शांत और सौम्य वातावरण हमें उनके इस स्वरूप से जुड़ने और अपनी आंतरिक चेतना को जगाने में मदद करता है। यह समय हमें अपने भीतर के शिवत्व (यानी कल्याणकारी और शांत स्वरूप) को पहचानने का अवसर देता है।


सावन – शिवत्व को आत्मसात करने का पर्व

कुल मिलाकर, सावन का महीना भगवान शिव को इसलिए प्रिय है क्योंकि यह उनके त्याग, कल्याणकारी स्वरूप, प्रकृति से उनके संबंध, प्रेम और तपस्या के आदर्श और भक्तों की अनन्य भक्ति का प्रतीक है। यह वह समय है जब सृष्टि स्वयं शिव की पूजा में लीन होती है, और भक्त भी उनके इस भाव से जुड़कर स्वयं को धन्य महसूस करते हैं।

जैसा कि परम पूज्य मुनिजी फलाहारी महाराज जी समझाते हैं, सावन हमें सिखाता है कि हमें आंतरिक शुद्धि और शांति की ओर बढ़ना चाहिए, विषपान कर अमृत बांटने की शिव की भावना को आत्मसात करना चाहिए और प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाना चाहिए। यह महीना हमारे जीवन में सकारात्मकता, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक जागृति लाता है। यह आत्म-परिवर्तन और शिव के आदर्शों पर चलने का अनुपम अवसर है।

मुझे विश्वास है कि आप भी इस सावन में शिव कृपा का अनुभव करेंगे और अपने जीवन को धन्य बनाएंगे।

जय माँ गायत्री। जय सनातन धर्म।