परम पूज्य श्री श्री 1008 मुनिजी फलाहारी महाराज जी
आप सभी को मेरा प्रणाम! सावन का महीना आता है, तो भगवान शिव की भक्ति की एक लहर पूरे वातावरण में फैल जाती है। जहाँ एक ओर प्रकृति हरी-भरी होकर शिव का अभिषेक करती है, वहीं दूसरी ओर भक्तों का मन भजन, सत्संग और कीर्तन में रम जाता है। ये केवल धार्मिक गतिविधियां नहीं हैं, बल्कि भक्ति के वे शक्तिशाली माध्यम हैं जो हमारे मन को शांति देते हैं और हमारी आत्मा को परमात्मा से जोड़ते हैं। आइए, मेरे साथ समझते हैं कि सावन में भजन, सत्संग और कीर्तन की महिमा इतनी क्यों है।
1. भक्ति संगीत कैसे वातावरण को शुद्ध करता है?
संगीत में एक अद्भुत शक्ति होती है। यह हमारे भीतर भावनाओं को जगाता है और हमारे मन की स्थिति को बदल सकता है। जब यह संगीत ईश्वर की भक्ति में लीन होता है, तो इसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
मुनिजी कहते हैं कि भजन, सत्संग और कीर्तन में गाए जाने वाले मंत्र और नाम जाप केवल ध्वनि नहीं हैं, बल्कि ये एक विशेष प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा और कंपन पैदा करते हैं। जब इन मंत्रों को लयबद्ध तरीके से गाया जाता है, तो ये कंपन वातावरण में फैल जाते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।
- ध्वनि का प्रभाव: जिस प्रकार एक शांत तालाब में पत्थर फेंकने से तरंगें पैदा होती हैं, उसी प्रकार भक्ति संगीत की ध्वनि से हमारे आसपास के वातावरण में एक सकारात्मक ऊर्जा की तरंगें फैलती हैं। ये तरंगें हमारे मन और शरीर पर शांत करने वाला प्रभाव डालती हैं।
- वैज्ञानिक पहलू: वैज्ञानिक भी मानते हैं कि कुछ आवृत्तियाँ (फ्रीक्वेंसी) हमारे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को शांत करती हैं। भक्ति संगीत की धुनें और मंत्रों का जाप इसी सिद्धांत पर काम करते हैं। ये तनाव को कम करते हैं, मन को शांति देते हैं और एकाग्रता को बढ़ाते हैं।
सावन में, जब प्रकृति स्वयं शिव की स्तुति में लीन होती है, ऐसे में हम भी भजन और कीर्तन के माध्यम से उस ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ते हैं। यह हमें अपने भीतर के शिवत्व को जगाने में मदद करता है।
2. सामूहिक कीर्तन से मन को मिलने वाली शांति
कीर्तन का अर्थ है भगवान के नाम का गुणगान करना, और जब यह सामूहिक रूप से किया जाता है, तो इसकी शक्ति अतुलनीय हो जाती है।
- अहंकार का शमन: मुनिजी बताते हैं कि जब हम सब एक साथ मिलकर कीर्तन करते हैं, तो हमारे भीतर का ‘मैं’ समाप्त हो जाता है। हम अपनी व्यक्तिगत पहचान को भूलकर एक सामूहिक चेतना का हिस्सा बन जाते हैं। इस अवस्था में अहंकार का शमन होता है और मन शांत हो जाता है।
- भाव का आदान-प्रदान: जब एक व्यक्ति भक्ति भाव से गाता है, तो उसका भाव दूसरे व्यक्ति में संचारित होता है। सामूहिक कीर्तन में यह भाव कई गुना बढ़ जाता है, जिससे सभी भक्त भक्ति के एक ही प्रवाह में बहने लगते हैं। यह एक ऐसा अनुभव है जो हमें गहरी शांति और आनंद प्रदान करता है।
- एकता का प्रतीक: कीर्तन में सभी लोग, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति के हों, एक साथ बैठते हैं और एक ही ध्वनि में भगवान का नाम जपते हैं। यह भारतीय संस्कृति की एकता और समरसता का अद्भुत प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक मार्ग पर हम सब एक समान हैं।
सावन में, खासकर मंदिरों और आश्रमों में होने वाले सामूहिक कीर्तन से मन को जो शांति मिलती है, वह किसी और माध्यम से संभव नहीं है। यह मन की चंचलता को दूर करता है और उसे ईश्वर के चरणों में स्थिर करता है।
3. सावन में बाबा जी के सत्संग और प्रवचनों का महत्व
सत्संग का अर्थ है ‘सत्’ (सत्य) का संग। यह एक ऐसा अवसर है जहाँ हम संतों, गुरुओं और महात्माओं के पास बैठकर उनके ज्ञान और अनुभव से सीखते हैं।
- ज्ञान की प्राप्ति: सावन के महीने में बाबा जी के सत्संग और प्रवचन सुनने से हमें न केवल धार्मिक कथाओं का ज्ञान होता है, बल्कि जीवन को सही दिशा में चलाने के लिए मार्गदर्शन भी मिलता है। मुनिजी अपने प्रवचनों में सनातन धर्म के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में समझाते हैं, जिससे हर कोई उन्हें समझ सके।
- जीवन के प्रश्नों का समाधान: जीवन में जब हम समस्याओं और दुविधाओं से घिरे होते हैं, तो सत्संग हमें उन प्रश्नों के उत्तर देता है। यह हमें सही और गलत के बीच का अंतर बताता है और हमें जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना सिखाता है।
- प्रेरणा और ऊर्जा: सावन में बाबा जी के प्रवचन सुनना भक्तों के लिए एक नई प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत होता है। यह उन्हें भक्ति के मार्ग पर दृढ़ रहने और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देता है। बाबा जी का मार्गदर्शन हमें याद दिलाता है कि आध्यात्मिक मार्ग पर कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
सावन में सत्संग में जाना और बाबा जी के वचनों को सुनना, हमारे मन और बुद्धि को शुद्ध करता है। यह हमें आत्म-चिंतन करने और अपने भीतर के ईश्वर को खोजने में मदद करता है।
सावन – भक्ति, ज्ञान और शांति का पर्व
कुल मिलाकर, सावन का महीना हमें भक्ति के विभिन्न आयामों से जोड़ता है। जहाँ एक ओर हम रुद्राभिषेक और व्रत से भगवान शिव की पूजा करते हैं, वहीं भजन, सत्संग और कीर्तन के माध्यम से हम अपने मन और आत्मा को शुद्ध करते हैं।
जैसा कि परम पूज्य मुनिजी फलाहारी महाराज जी समझाते हैं, भजन, सत्संग और कीर्तन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आंतरिक शांति, सामूहिक एकता और आध्यात्मिक जागृति के शक्तिशाली साधन हैं। सावन का पावन काल हमें इन साधनों को अपनाकर अपने जीवन को अधिक सार्थक, शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाने का अवसर देता है।
मुझे विश्वास है कि आप भी इस सावन में भक्ति संगीत और सत्संग की महिमा का अनुभव करेंगे और अपने जीवन को धन्य बनाएंगे।
जय माँ गायत्री। जय सनातन धर्म। जय भोलेनाथ।
Leave a Reply