परम पूज्य श्री श्री 1008 मुनिजी फलाहारी महाराज जी
आप सभी को मेरा प्रणाम! सावन का महीना, जिसे श्रावण मास भी कहते हैं, हिंदू धर्म में विशेष पवित्रता और महत्व रखता है। यह सिर्फ एक कैलेंडर का महीना नहीं, बल्कि शिव भक्ति, प्रकृति के सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम है। आइए, मेरे साथ जानते हैं कि सावन को इतना खास क्यों माना जाता है और यह भक्तों के लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण है।
भगवान शिव का प्रिय मास : विषपान की कथा और शिवत्व का संदेश
सावन मास भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना माना जाता है। मैंने अपने वर्षों की साधना और अनुभव में पाया है कि इस महीने में शिव तत्व की उपस्थिति और भी प्रबल हो जाती है। यह समय शिव की कृपा और उनके कल्याणकारी स्वरूप को आत्मसात करने का अद्भुत अवसर है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवता और असुर मिलकर क्षीरसागर का मंथन कर रहे थे, तब उसमें से हलाहल नामक भयंकर विष निकला। इस विष की ज्वाला इतनी प्रचंड थी कि उससे पूरी सृष्टि जलने लगी। सभी देवी-देवता भयभीत होकर भगवान शिव की शरण में गए। सृष्टि को इस विनाश से बचाने के लिए, देवों के देव महादेव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। यह विष इतना तीव्र था कि उनका कंठ नीला पड़ गया, और तभी से उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा। इस विष के प्रभाव को कम करने और शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए, सभी देवी-देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया था। यह अद्भुत घटना सावन मास में हुई थी, तभी से यह महीना भगवान शिव को समर्पित हो गया।
मुनिजी बताते हैं कि यह घटना केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक संदेश देती है। यह हमें सिखाती है कि जब भी समाज या सृष्टि पर कोई संकट आता है, तो उसे स्वयं पर लेने की हिम्मत रखनी चाहिए, भले ही वह कितना भी कष्टकारी क्यों न हो। शिव ने विष पीकर भी अमृत बांटा। यह त्याग, बलिदान और परोपकार का सर्वोच्च उदाहरण है। इस पूरे महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने और अभिषेक करने का विशेष महत्व है, और मैं अपने आश्रम में भी इसे बड़े ही श्रद्धा भाव से संपन्न करवाता हूँ। यह अभिषेक केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि शिव के प्रति हमारे समर्पण और उनकी कृपा को ग्रहण करने का माध्यम है।
प्रकृति का नवजीवन और शिव का स्वाभाविक अभिषेक
सावन वो समय है जब प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है। भीषण गर्मी के बाद जब वर्षा की बूंदें धरती पर गिरती हैं, तो सूखी धरती में जान आ जाती है। हरियाली लौट आती है, फूल खिल उठते हैं और वातावरण में एक अद्भुत ताजगी घुल जाती है। यह प्रकृति का भगवान शिव पर किया गया स्वाभाविक अभिषेक है। जैसे प्रकृति स्वयं शिव के अभिषेक में लीन रहती है, वैसे ही भक्त भी इस महीने में शिव को जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा और अन्य पवित्र वस्तुएं अर्पित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
मुनिजी समझाते हैं कि प्रकृति का यह कायाकल्प हमें आंतरिक शुद्धि का संदेश देता है। जिस तरह बारिश की बूंदें धूल को धोकर सब कुछ निर्मल कर देती हैं, उसी तरह सावन की भक्ति हमारे मन के मैल को धोकर हमें पवित्र करती है। इस महीने भर का अभिषेक केवल एक क्रियाकांड नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक प्रक्रिया है जो मन को शांत और शुद्ध करती है। यह हमें प्रकृति से जुड़ने, उसके चक्रों को समझने और स्वयं को उस विराट शक्ति के साथ एकाकार करने का अवसर देती है जो सृष्टि का संचालन करती है। मैंने अनेकों भक्तों को इस अनुभव से लाभान्व्वित होते देखा है, जब वे प्रकृति के सान्निध्य में शिव भक्ति में लीन होते हैं।
सोमवार व्रत का विशेष महत्व : आस्था, अनुशासन और मनोकामना पूर्ति
सावन मास में आने वाले प्रत्येक सोमवार का विशेष महत्व होता है, जिन्हें “सावन के सोमवार” कहा जाता है। यह दिन भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इन दिनों रखे गए व्रतों का फल शीघ्र मिलता है, ऐसी मान्यता है।
अविवाहित कन्याएँ अच्छे वर की कामना के लिए और विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इन व्रतों को रखने से भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मुनिजी की दृष्टि में, यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो हमें अपनी इच्छाओं को शुद्ध करने का अवसर देता है। यह केवल भौतिक कामनाओं की पूर्ति का माध्यम नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण, भक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है। व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण करना सीखता है, जो आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सावन के सोमवार के व्रतों के साथ-साथ, कई भक्त मंगल गौरी व्रत भी रखते हैं जो मंगलवार को आता है और माता पार्वती को समर्पित होता है। यह व्रत विशेषकर विवाहित महिलाओं के लिए सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु किया जाता है। सावन के हर दिन का अपना एक महत्व है, लेकिन सोमवार को शिव साधना का सबसे शुभ दिन माना जाता है।
कांवड़ यात्रा : भक्ति, पैदल यात्रा और त्याग का महाकुंभ
सावन में कांवड़ यात्रा का भी बड़ा महत्व है। यह भारत की सबसे बड़ी धार्मिक पदयात्राओं में से एक है। लाखों श्रद्धालु, जिन्हें कांवड़िए कहा जाता है, पवित्र नदियों जैसे गंगा के तटों (मुख्यतः हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख, सुल्तानगंज) से जल भरकर सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर शिव मंदिरों तक पहुंचते हैं और उस जल से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। यह यात्रा भक्तों की अटूट श्रद्धा, शारीरिक तपस्या और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है।
मुनिजी कहते हैं कि इस यात्रा की कठिनाइयाँ भक्तों की निष्ठा को और मजबूत करती हैं। भीषण गर्मी, लंबी दूरी और शारीरिक कष्ट सहकर भी वे अपने आराध्य तक पहुंचने का संकल्प पूरा करते हैं। यह दर्शाता है कि भक्त अपने आराध्य के लिए किसी भी कठिनाई का सामना करने को तैयार रहते हैं। मैंने स्वयं इन कांवड़ियों की निष्ठा को देखा है और उनके त्याग को प्रणाम करता हूँ। कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक जुलूस नहीं है; यह सामाजिक समरसता, दृढ़ संकल्प और सामूहिक भक्ति का भी प्रतीक है। इस दौरान जात-पात और ऊंच-नीच का भेद मिट जाता है, और सभी भक्त ‘बम बम भोले’ के उद्घोष के साथ एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।
माँ पार्वती की तपस्या और शिव-पार्वती का मिलन : दांपत्य का आदर्श
मान्यता है कि सावन मास में ही देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने वर्षों तक निराहार रहकर, सिर्फ पत्तियों पर जीवन बिताया, जिससे उनका नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ा। उनकी इस अदम्य तपस्या और प्रेम से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
यही कारण है कि सावन को विवाह और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है। मुनिजी अक्सर अपने प्रवचनों में बताते हैं कि शिव और पार्वती का यह मिलन केवल दो आत्माओं का नहीं, बल्कि सृष्टि में शक्ति और चेतना के संतुलन का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम और दृढ़ संकल्प हो, तो कुछ भी असंभव नहीं। यह दांपत्य जीवन के आदर्शों, त्याग, धैर्य और आपसी समझ को दर्शाता है।
आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार और साधना का अवसर
सावन का महीना आध्यात्मिक साधना और ध्यान के लिए भी अनुकूल माना जाता है। इस दौरान वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ जाता है, जिससे मन शांत और एकाग्र होता है। इस महीने में किए गए मंत्र जाप, ध्यान, रुद्राक्ष धारण करना और अन्य आध्यात्मिक अभ्यास विशेष फलदायी माने जाते हैं।
मुनिजी हमेशा अपने शिष्यों और भक्तों को इस समय का सदुपयोग करने की सलाह देते हैं ताकि वे अपनी आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ सकें। वे बताते हैं कि सावन की हवा में भी एक विशेष ऊर्जा होती है जो हमारे भीतर के शिवत्व को जगाने में सहायक होती है। इस समय में प्रकृति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का तालमेल ऐसा होता है कि हमारी प्रार्थनाएं और साधनाएं अधिक प्रभावी हो जाती हैं। लोग शिव तांडव स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र, और शिव चालीसा का पाठ कर शिव कृपा प्राप्त करते हैं। सावन में बेलपत्र, शमी पत्र और भांग-धतूरा चढ़ाने का भी प्रतीकात्मक महत्व है, जो शिव की सरलता और संसार के हर तत्व को स्वीकार करने की भावना को दर्शाता है।
सावन – आत्मिक उन्नति का पर्व
कुल मिलाकर, सावन का महीना सिर्फ पूजा-पाठ का नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने, आत्म-चिंतन करने और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाने का भी अवसर है। यह भक्ति, त्याग और समर्पण का वह समय है जब भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा भक्तों पर बरसती है।
जैसा कि परम पूज्य मुनिजी फलाहारी महाराज जी समझाते हैं, सावन हमें सिखाता है कि हमें आंतरिक शुद्धि और शांति की ओर बढ़ना चाहिए, विषपान कर अमृत बांटने की शिव की भावना को आत्मसात करना चाहिए और प्रकृति के साथ harmonious संबंध बनाना चाहिए। यह महीना हमारे जीवन में सकारात्मकता, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक जागृति लाता है।
मुझे विश्वास है कि आप भी इस सावन में शिव कृपा का अनुभव करेंगे और अपने जीवन को धन्य बनाएंगे। यही कारण है कि सावन मास हिंदू संस्कृति और आध्यात्मिकता में इतना खास और महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
जय माँ गायत्री। जय सनातन धर्म।
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