Shri Shri 1008 Shri Bhuvanishwar Muniji Falahari Maharaj Ji

धर्म केवल एक अभ्यास नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका है।

महामृत्युंजय मंत्र: सावन में जाप का महत्व और लाभ – शिव से जीवन और मुक्ति का वरदान

परम पूज्य श्री श्री 1008 मुनिजी फलाहारी महाराज जी

आप सभी को मेरा प्रणाम! सावन का महीना शिव साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। इस पावन काल में एक ऐसा मंत्र है जिसका जाप न केवल मृत्यु के भय को हरता है, बल्कि जीवन को भी संजीवनी प्रदान करता है। यह है महामृत्युंजय मंत्र। अक्सर लोग इसे केवल मृत्यु के डर से मुक्ति पाने का मंत्र समझते हैं, लेकिन मेरे अनुभव और मेरी दृष्टि में, यह जीवन के हर कष्ट को हरने और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने वाला महामंत्र है। आइए, मेरे साथ इस मंत्र के गहरे अर्थ, इसके उच्चारण की सही विधि और इसके अद्भुत लाभों को समझते हैं।


1. महामृत्युंजय मंत्र क्या है? – शब्द का अर्थ और उसका गूढ़ रहस्य

‘महामृत्युंजय’ शब्द तीन शब्दों के मेल से बना है: महा (महान), मृत्यु (मृत्यु), और जय (जीत)। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला महान मंत्र’। यह ऋग्वेद और यजुर्वेद का एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसे भगवान शिव को समर्पित किया गया है।

यह मंत्र हमें भगवान शिव के उस स्वरूप से जोड़ता है जो मृत्यु को भी जीतने की शक्ति रखता है। यह केवल शारीरिक मृत्यु से मुक्ति का मंत्र नहीं, बल्कि जीवन में आने वाली हर बाधा, भय, रोग और मानसिक मृत्यु (यानी निराशा, अज्ञानता, और नकारात्मकता) पर विजय प्राप्त करने का मंत्र है।

मुनिजी बताते हैं कि यह मंत्र केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि एक कंपन है। जब हम इसका सही उच्चारण करते हैं, तो हमारे शरीर, मन और आत्मा में एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है। यह ऊर्जा हमें शिव के कल्याणकारी स्वरूप से जोड़ती है और हमें जीवन के हर नकारात्मक प्रभाव से लड़ने की शक्ति देती है।


2. महामृत्युंजय मंत्र की कथा: मार्कंडेय ऋषि और अमरता का वरदान

इस मंत्र की उत्पत्ति की एक प्रसिद्ध कथा मार्कंडेय ऋषि से जुड़ी है। माना जाता है कि मार्कंडेय ऋषि अल्पायु थे और उनकी कुंडली में अल्पायु का योग था। जब उनकी आयु 16 वर्ष की हुई और यमराज उन्हें लेने आए, तो उन्होंने यम के भय से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी।

मार्कंडेय ऋषि ने उसी महामंत्र का जाप करना शुरू किया जो आज हम ‘महामृत्युंजय मंत्र’ के नाम से जानते हैं। जब यमराज उनके पास पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि मार्कंडेय शिवलिंग से लिपटे हुए थे और पूरे समर्पण से मंत्र का जाप कर रहे थे। यमराज ने जब उन्हें लेने का प्रयास किया, तो वे शिवलिंग के साथ ही बंध गए। भगवान शिव अपने भक्त की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और साक्षात् प्रकट होकर यमराज को वापस जाने का आदेश दिया। शिव ने मार्कंडेय को अमरता का वरदान दिया, जिससे उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की।

मुनिजी कहते हैं कि यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और विश्वास से किया गया मंत्र जाप मृत्यु के भय को भी दूर कर सकता है। यह मंत्र केवल लंबी आयु ही नहीं देता, बल्कि हमें जीवन को पूर्णता और निडरता से जीने की शक्ति भी प्रदान करता है। यह हमें सिखाता है कि शिव की शरण में जाने से हम हर कष्ट से पार पा सकते हैं।


3. मंत्र का अर्थ और इसका गूढ़ आध्यात्मिक संदेश

मंत्र इस प्रकार है: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

आइए, इसके शब्दों का गहरा अर्थ समझते हैं:

  • ॐ: यह ब्रह्मांड की ध्वनि है, परम सत्य का प्रतीक है।
  • त्र्यम्बकं यजामहे: हम तीन आँखों वाले (त्रिनेत्रधारी) भगवान शिव की पूजा करते हैं। ये तीन आँखें सूर्य, चंद्रमा और अग्नि का प्रतीक हैं, जो भूत, वर्तमान और भविष्य को दर्शाती हैं।
  • सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्: जो सुगंधित हैं (सभी लोकों में जिनकी महिमा फैली है), और जो हमें पोषण देकर जीवन में वृद्धि करते हैं।
  • उर्वारुकमिव बन्धनान्: जैसे खरबूजा (उर्वारुक) पकने पर स्वयं ही अपनी डंठल से मुक्त हो जाता है।
  • मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्: उसी तरह हमें भी मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दें, लेकिन अमृत से नहीं।

मुनिजी समझाते हैं कि मंत्र का अंतिम भाग बहुत महत्वपूर्ण है। भक्त यह नहीं कह रहा कि मुझे मृत्यु से बचा लो, बल्कि वह यह प्रार्थना कर रहा है कि मुझे मृत्यु के भय, रोगों के बंधन और सांसारिक मोह से इस प्रकार मुक्त करो, जैसे पका हुआ फल बिना किसी कष्ट के अपनी डंठल से अलग हो जाता है। यह एक ऐसी मुक्ति है जिसमें जीवन का भय नहीं, बल्कि पूर्णता और शांति का भाव है। ‘माऽमृतात्’ का अर्थ है ‘अमरता से नहीं’ या ‘अमरता की आशा से नहीं’, यानी हमारा लक्ष्य अमरता नहीं, बल्कि मुक्ति है। यह हमें जीवन के यथार्थ को स्वीकार करने की शिक्षा देता है।


4. सावन में जाप का विशेष महत्व और विधि

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए इस महीने में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

मुनिजी कहते हैं कि सावन में वातावरण में शिव तत्व की उपस्थिति अधिक होती है। इस समय किया गया जाप जल्दी सिद्ध होता है और उसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।

जाप की सही विधि:

  1. समय और स्थान: सुबह स्नान के बाद या संध्याकाल में शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें।
  2. सामग्री: रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें। यह जाप के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। शिवलिंग के पास बैठना सर्वोत्तम है।
  3. आसन: कुश का आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  4. संकल्प: जाप शुरू करने से पहले भगवान शिव के समक्ष अपनी मनोकामना का संकल्प लें।
  5. जाप: पूरी श्रद्धा और एकाग्रता के साथ मंत्र का जाप करें। शुरुआत में 108 बार या एक माला जाप करें, फिर धीरे-धीरे संख्या बढ़ा सकते हैं।
  6. उच्चारण: मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और सही होना चाहिए। गलत उच्चारण से मंत्र का प्रभाव कम हो सकता है।

5. महामृत्युंजय मंत्र जाप के लाभ – शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

महामृत्युंजय मंत्र का जाप केवल धार्मिक लाभ ही नहीं देता, बल्कि इसके वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक लाभ भी हैं:

  • शारीरिक स्वास्थ्य: मंत्र के कंपन से शरीर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकलती है। यह रक्तचाप को नियंत्रित करने, तनाव को कम करने और विभिन्न रोगों से लड़ने में सहायक होता है।
  • मानसिक शांति: लगातार जाप से मन शांत और एकाग्र होता है। यह निराशा, अवसाद और चिंता को दूर कर सकारात्मकता लाता है।
  • मृत्यु भय से मुक्ति: यह मंत्र मृत्यु के भय को दूर कर व्यक्ति को जीवन के अंतिम क्षणों तक निडरता से जीने की शक्ति देता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: यह हमें अपने भीतर के शिवत्व को जागृत करने में मदद करता है। यह आत्म-ज्ञान, आत्म-नियंत्रण और मोक्ष की ओर ले जाता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: घर और आसपास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे सभी बाधाएं दूर होती हैं।

मुनिजी कहते हैं कि यह मंत्र हमें बताता है कि जीवन में मृत्यु अटल है, लेकिन हमें मृत्यु से डरना नहीं चाहिए, बल्कि जीवन को पूर्णता से जीना चाहिए। यह मंत्र हमें इस सत्य को स्वीकार करने और जीवन में आनंदित रहने की शक्ति देता है।


महामृत्युंजय मंत्र – जीवन का कवच और मोक्ष का साधन

कुल मिलाकर, महामृत्युंजय मंत्र सिर्फ एक प्रार्थना नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक कवच है। यह हमें हर कष्ट, रोग और भय से बचाता है। सावन का महीना इस मंत्र की शक्ति को जागृत करने का सबसे उत्तम समय है।

जैसा कि परम पूज्य मुनिजी फलाहारी महाराज जी समझाते हैं, यह मंत्र हमें सिखाता है कि जीवन में आने वाले ‘विष’ (कष्टों) को शांत करने की शक्ति हममें स्वयं मौजूद है, बस हमें उस शक्ति को पहचानने और जगाने की जरूरत है। महामृत्युंजय मंत्र हमें इसी आंतरिक शक्ति से जोड़ता है।

मुझे विश्वास है कि आप भी इस सावन में इस मंत्र के जाप से अपने जीवन को रोग मुक्त, भय मुक्त और आनंदमय बनाएंगे।

जय माँ गायत्री। जय सनातन धर्म। जय महाकाल।